UP के पूर्व मंत्री और पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का निधन हो गया. वह 86 साल के थे. हरिशंकर तिवारी यूपी के कद्दावर नेता जाने जाते थे और एक जमाने में पूर्वांचल में उनके नाम की तूती बोलती थी.

उन्होंने जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा था. ऐसा माना जाता है हिंदुस्तान में जेल में रह कर सबसे पहले चुनाव जीतने वाले नेता हरिशंकर तिवारी ही थे.

हरिशंकर तिवारी ने अपराध से राजनीतिक की ओर कदम बढ़ाया था. हरिशंकर तिवारी प्रदेश के ऐसे नेता थे जिनका वास्ता कई दलों से रहा. चिल्लूपार विधानसभा सीट पर उनका दो दशक से भी ज्यादा समय तक दबदबा रहा. सन् 1985 से लेकर 2007 तक वो इस सीट से एमएलए चुनकर आते रहे.

जेपी आंदोलन के दौर में आए चर्चा में

आपातकाल से पहले जब देश में छात्र आंदोलन और जेपी आंदोलन जोर पकड़ रहा था, उस आंदोलन की आग गोरखपुर विश्वविद्यालय भी पहुंच चुकी थी. उस वक्त विश्वविद्यालय में हरिशंकर तिवारी का वर्चस्व कायम था. उनका अपना अलग गुट था. वह ब्राह्मण छात्रों के मसीहा कहे जाते थे और जब ठाकुरों के गुट के नेता थे बलवंत सिंह. दोनों गुटों का पूर्वांचल में आतंक स्थापित हो चुका था. कोई उनके खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते थे. दोनों गुटों के बीच कई बार हिंसक झड़पें भी हुईं.

1985 में हरिशंकर तिवारी गए जेल

अस्सी के दशक तक हरिशंकर तिवारी एक बड़े बाहुबली नेता के तौर पर कुख्यात हो चुके थे. उन्होंने पहला चुनाव जेल में रहते हुए लड़ा था. यह साल 1985 का दौर था. चिल्लूपार विधानसभा सीट से उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के मार्कंडेय को भारी मतों से परास्त कर दिया. इसी के साथ हरिशंकर तिवारी देश के पहले ऐसे विधायक बने जिन्होंने जेल में रहकर चुनाव जीता.

यूपी के सभी दलों से रहा साथ

हरिशंकर तिवारी ने वैसे तो पहली बार कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को हराया था लेकिन बाद में वो हरिशंकर तिवारी ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया. लेकिन कांग्रेस पार्टी के बाद उनका संबंध भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी से भी रहा.

हरिशंकर तिवारी 1996 में कल्याण सिंह की सरकार के समय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री थे. वहीं साल 2000 में वो स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री बने. इसके बाद साल 2001 और साल 2002 में भी हरिशंकर तिवारी राजनाथ सिंह से लेकर मायावती की सरकार में भी शामिल रहे. मायावती की सरकार में रहने के बावजूद उनका सपा से संबंध कायम रहा. यही वजह थी कि साल 2003 में उन्हें सपा सरकार में भी मंत्री पद मिल गया.

2007 के बाद बेटों को सौंपी सियासत

इस साल के बाद हरिशंकर तिवारी की सियासत अस्त होने लगी. वो लगातार दो चुनाव हार गये. दोनों ही बार राजेश त्रिपाठी ने उनको चुनाव में हरा दिया. इसके बाद उन्होंने चुनाव न लड़ने की ठानी और अपने दोनों बेटों को कुशल तिवारी और विनय शंकर तिवारी को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी.

By Ajay Thakur

Ajay Thakur, a visionary journalist and the driving force behind a groundbreaking news website that is redefining the way we consume and engage with news.