दक्षिण एशियाई मामलों के एक जाने-माने अमेरिकी विशेषज्ञ जब कई साल पहले भारत के दौरे पर आए थे, तो उनकी बातचीत एक स्थानीय विश्लेषक से हुई थी.
वो कहते हैं कि उनके ज़हन में आज भी वो बातचीत गूंजती रहती है.
वॉशिंगटन के विल्सन सेंटर थिंक टैंक में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन बताते हैं कि उस स्थानीय विश्लेषक ने उनसे कहा था,”अगर पाकिस्तान तबाही के गर्त में गिरता है, तो हमें ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत होगी कि वो अपने साथ हमें भी न ले डूबे.”
हाल के दिनों में हमने पाकिस्तान को भयंकर सियासी और आर्थिक संकट से जूझते हुए देखा है. भ्रष्टाचार के आरोपों में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद पूरे मुल्क में ज़बरदस्त हिंसा भड़क उठी थी.
पाकिस्तान पहले से ही भयंकर महंगाई और लगभग शून्य विकास दर की चुनौतियों का सामना कर रहा है.
पाकिस्तान की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाली फ़ौज के साथ इमरान ख़ान का टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है.
इमरान ख़ान का इल्ज़ाम है कि पाकिस्तानी फ़ौज उनकी हत्या कराने की कोशिश कर रही है.
माइकल कुगेलमैन कहते हैं, “जब आपका पड़ोसी पाकिस्तान जैसा दुश्मन हो और अपने अच्छे से अच्छे दौर में भी उथल पुथल का शिकार रहा हो, और वो आज भयंकर राजनीतिक संकट, बड़े पैमाने पर हिंसा, तोड़-फोड़ और ख़ास तौर से फ़ौज और सियासी दलों के बीच टकराव का शिकार हो, तो आपको निश्चित रूप से चिंतित होना चाहिए.”
वो कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में चल रही उथल-पुथल भारत तक फैल जाएगी. मगर असली फ़िक्र इस बात की है कि अपने अंदरूनी झंझावातों से जूझता पाकिस्तान, उन चीज़ों पर क़ाबू रखने की तरफ़ ध्यान नहीं दे पाएगा, जो भारत के लिए भयंकर ख़तरा हैं- जैसे कि भारत के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ने वाले चरमपंथी.”
1947 में आज़ाद होने के बाद से भारत और पाकिस्तान तीन बड़े युद्ध लड़ चुके हैं. इनमें से एक को छोड़ दें तो बाक़ी सभी जंगें कश्मीर को लेकर ही हुई हैं.
2019 में भारतीय सुरक्षाबलों पर आतंकवादी हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर हवाई हमले किए थे.
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने हाल ही में प्रकाशित अपनी किताब में दावा किया था कि 2019 की इस झड़प के बाद दोनों देश, एक एटमी जंग के बेहद ‘क़रीब’ पहुंच गए थे.
लेकिन 2021 में दोनों देशों ने सीमा पर अमन क़ायम रखने के लिए युद्ध विराम का समझौता किया था, जिससे कम से कम अब तक तो हालात क़ाबू में हैं.
तो, क्या अपने पड़ोस में चल रही इस उठा-पटक से भारत को चिंतित होना चाहिए?
पाकिस्तान में उथल पुथल का इतिहास
इतिहास के पन्नों से हमें कुछ इशारे तो मिलते हैं. 1971 में पाकिस्तान की अंदरूनी उठा-पटक का नतीजा, उप-महाद्वीप में एक ख़ूनी जंग और फिर बांग्लादेश के रूप में एक नए देश के उदय के तौर पर निकला था.
साल 2008 में एक जन आंदोलन ने पाकिस्तान के फ़ौजी शासक परवेज़ मुशर्रफ़ के राज का ख़ात्मा कर दिया था.
उस वक़्त हुए चुनावों में मुशर्रफ़ को करारी हार का सामना करना पड़ा था. इसके कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान से जुड़े दहशतगर्दों ने मुंबई पर बड़ा आतंकवादी हमला किया था.
लेकिन, तारीख़ की ये मिसालें, उस संकट के आगे फ़ीकी पड़ जाती हैं, जिनका शिकार पाकिस्तान आज है.
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हुसैन हक़्क़ानी अब वॉशिंगटन के हडसन इंस्टीट्यूट और अबू धाबी के अनवर गरगाश डिप्लोमैटिक एकेडमी से जुड़े विद्वान हैं.
हुसैन हक़्क़ानी कहते हैं, “पाकिस्तान में ये उथल-पुथल उस वक़्त मची हुई है, जब पाकिस्तान अपनी तारीख़ के शायद सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है और ऐसा लगता है कि इस मुश्किल वक़्त में पाकिस्तान का शासक तंत्र यानी फ़ौज कमज़ोर और अंदर से बंटी हुई है.”
पूरे मुल्क में हिंसक प्रदर्शन के दौरान इमरान ख़ान के समर्थक सुरक्षा बलों से भी भिड़ गए थे.
भारत के साथ संबंधों पर असर की दो संभावनाएं
इस उथल पुथल के चरम सीमा पर पहुंचने पर दो नतीजे निकल सकते हैं. हालांकि माइकल कुगेलमैन जैसे विशेषज्ञ इस बात से इनकार करते हैं-
पहला ये है कि पाकिस्तान, मतभेद ख़त्म करने के लिए भारत की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ा सकता है. हालांकि ‘ये अलग बात होगी कि भारत की इसमें दिलचस्पी नहीं होगी.’
दूसरा पाकिस्तान, भारत पर अपना ध्यान केंद्रित करने वाले दहशतगर्दों को सीमा पार कोई बड़ा हमला करने के लिए उकसाए, लेकिन माइकल कुगेलमैन कहते हैं, “मौजूदा हालात में पाकिस्तान किसी और संघर्ष या भारत के साथ कोई नया टकराव मोल लेने का साहस शायद ही जुटा पाए.”
लेकिन, भारत की चिंता इस बात को लेकर होनी चाहिए जो इन दोनों भयंकर नतीजों के बीच की स्थिति हो सकती है.
माइकल कुगेलमैन कहते हैं, “ये वो स्थिति होगी, जो अंदरूनी उथल-पुथल के शिकार पाकिस्तान के बस की बात नहीं होगी. चूंकि, पाकिस्तान का ध्यान इस वक़्त बंटा हुआ है, तो वो सीमा पार से किसी हमले की आशंका पर क़ाबू बनाए रखने की स्थिति में नहीं होगा.”
लंदन की एसओएएस यूनिवर्सिटी में राजनीति और इंटरनेशनल स्टडीज़ पढ़ाने वाले अविनाश पालीवाल भी ऐसे ही ख़यालात का इज़हार करते हैं. वो कहते हैं कि पाकिस्तान का आर्थिक और सियासी संकट सीमा पर युद्धविराम को बाधित कर सकता है.
अविनाश पालीवाल के मुताबिक़, “मौजूदा हालात में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष अगर सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं तो उन्हें कई फ़ायदे हो सकते हैं. जैसे कि, अवाम का ध्यान बंटेगा. वो कश्मीर मसले पर अपनी ताक़त दिखा सकेंगे, और इसके साथ-साथ ऐसी गतिविधियों के ज़रिए वो ये भी दिखाने की कोशिश कर सकते हैं कि फ़ौज पर उनका पूरा नियंत्रण है.”
वो कहते हैं, “संसाधन सीमित होने के बावजूद ये जोख़िम तो बना हुआ है, क्योंकि पाकिस्तान की तरफ़ से युद्ध विराम की गारंटी देने वाली फ़ौज इस वक़्त मुसीबतों से घिरी हुई है.”
ये भी ध्यान रखना होगा कि भारत और चीन के रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है.
पाकिस्तान में 13 दलों के सत्ताधारी गठबंधन ने इमरान ख़ान पर बदइंतज़ामी और अर्थव्यवस्था को तबाह करने का इल्ज़ाम लगाया है.
पाकिस्तान में उथल पुथल से भारत में प्रतिक्रिया
बहुत से लोग ये मानते हैं कि भारत को पाकिस्तान को लेकर अपनी ‘सनक’ से छुटकारा पाने की ज़रूरत है. भारत को अपने पड़ोसी मुल्क की मुसीबतों और संघर्षों से पैदा हुए संकटों से बहुत ज़्यादा फ़िक्रमंद होने की ज़रूरत नहीं है.
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की मुसीबतों से भारत में बहुत से लोगों को आनंद भी आ रहा है. ये उसी तरह है जैसे किसी की परेशानी से दूसरे को खुशी हो.
वो कहते हैं, “आख़िर भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से दस गुना बड़ी है और मुसीबतों से घिरे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो भारत के सबसे अमीर प्रांत महाराष्ट्र से भी छोटी है.”
माइकल कुगेलमैन कहते हैं कि ऐसी प्रतिक्रिया तो बिल्कुल वाजिब है, “सभी देश चाहते हैं कि उनका दुश्मन मुसीबतों से घिरा रहे. ख़ास तौर से वो दुश्मन जिसने सीमा पार से आतंकवादी हमले प्रायोजित किए हों और बेवजह की जंगें थोपी हों.”
“भारत में पाकिस्तानी फ़ौज की चुनौतियों को देखकर लोग ख़ास तरह की तसल्ली महसूस कर रहे हैं. क्योंकि, पिछले तीन दशकों से भारत के लोग देखते आए हैं कि पाकिस्तानी फ़ौज, भारत पर हमला करने के लिए आतंकवादियों को पालती-पोसती रही है.”
माइकल कुगेलमैन कहते हैं, “अगर पाकिस्तान को मुसीबतों से घिरा देखकर भारत को बहुत मज़ा आ रहा है और वो अस्थिर पाकिस्तान से पैदा होने वाले ख़तरों को लेकर लापरवाह है, तो ये बात भी ख़तरनाक हो सकती है.”
हालांकि, पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रह चुके शरत सभरवाल जैसे विश्लेषक ये नहीं मानते कि ‘पाकिस्तान तबाही के समंदर में डूबने वाला’ है.
इसके बजाय वो ये मानते हैं कि पाकिस्तान अपने उथल-पुथल भरे इतिहास को दोहराते हुए ऐसे ही लड़खड़ाते हुए अपना सफ़र आगे भी जारी रखेगा.
और, जैसा कि अविनाश पालीवाल कहते हैं कि पाकिस्तान की मिसाल ‘वैचारिक और धार्मिक उन्माद के समर्थकों के लिए एक अच्छा सबक़ है’ और इससे साबित होता है कि धार्मिक राष्ट्रवाद पर क़ाबू पाने की ज़रूरत है.
भारत को क्या करना चाहिए?
पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे टीसीए राघवन कहते हैं, “मौजूदा हालात में शायद सबसे अच्छा यही होगा कि दोनों देश आपसी संबंधों के मामले में न्यूनतम संपर्क की स्थिति पर क़ायम रहते हुए नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम का पालन करते रहें.”
वहीं, हुसैन हक़्क़ानी जैसे दूसरे जानकारों का मानना है कि भारत इस वक़्त ‘देखो और इंतज़ार करो’ की रणनीति अपनाते हुए सीमा पर बारीक़ी से नज़र बना हुए है.
भारत का ज़ोर इस बात पर है कि पाकिस्तान की अस्थिरता का सैलाब अगर उसकी तरफ़ बढ़ता है, तो उसकी हालत बेख़बरी और हैरान रह जाने वाली न हो.
माइकल कुगेलमैन कहते हैं, “भारत को अभी भी सतर्क रहने की ज़रूरत है और उसे अपनी चौकसी में कोई कमी नहीं करनी चाहिए.”