पौष माह की सप्तमी तिथि पर सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जाती है। इस साल कल यानी 17 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जा रही है। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु थे।
वे सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने सिख धर्म के लिए कई नियम बनाए, जिसका पालन आज भी किया जाता है। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में स्थापित किया किया और सामाजिक समानता का पुरजोर समर्थन किया। गुरु गोबिंद सिंह जी अपने जीवनकाल में हमेशा दमन और भेदभाव के खिलाफ खड़े रहे, इसलिए वे लोगों के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में उभरे। ऐसे में आइए इस अवसर पर जानते हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन के बारे में खास बातें
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- नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक प्रत्येक वर्ष पौष माह की सप्तमी तिथि पर गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती मनाई जाती है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 22 दिसंबर 1666 में गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था। नानकशाही कैलेंडर को देखते हुए पौष सप्तमी पर ही इनकी जयंती मनाई जाती है।
- शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें गुरु थे। इन्होंने ही बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी।
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा वाणी, ‘वाहे गुरु की खालसा, वाहेगुरु की फतेह’ दिया था। खालसा पंथ की स्थापना के पीछे इनका उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और मुगलों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाना था।
- कहा जाता है कि सिखों के लिए पांच चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही दिया था। इन चीजों को ‘पांच ककार’ कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है।
- कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह एक महान योद्धा होने के साथ कई भाषाओं के जानकार और विद्वान महापुरुष थे। इन्हें पंजाबी, फारसी, अरबी, संस्कृत और उर्दू समेत कई भाषाओं की अच्छी जानकारी थी।
- सिख धर्म में कुल 10 गुरु हुए। गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें और आखिरी गुरु थे। इनके बाद ही गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वोच्च गुरु का दर्जा दिया गया था।
- कहा जाता है कि अपने पिता गुरु तेग बहादुर की शहादत के बाद मात्र 9 साल की उम्र में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु की जिम्मेदारी ली।
- उन्होंने छोटी सी उम्र में ही धनुष- बाण, तलवार, भाला आदि चलाने की कला भी सीखी और फिर अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया।