भारत कनाडा के ऐतिहासिक रिश्तों में आई खटास के बाद, कनाडा के वरिष्ठ राजनयिक को निरस्त कर देने के मामले ने इस बात पर मोहर लगा दी कि अब दोनों देशों के रिश्ते जल्द ठीक होने वाले नहीं है.
आमतौर पर डिप्लोमेटिक प्रैक्टिस में ऐसा कम देखने को मिलता है , जब दो देश इस स्तर पर एक दूसरे के खिलाफ एक्शन लेने पर आमादा हो जाए. भारत के लिए तो ख़ासतौर पर पश्चिमी देशों के लिए प्रकार के कदम उठाया जाना बहुत बड़ी बात मानी जाती रही है.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के खलिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर मामले में दिए गए बयान के बाद, भारत ने दिल्ली में कनाडा हाई कमीशन के एम्बेसडर कैमरून को निरस्त कर दिया. भारत का सीधा आरोप यह है कि कनाडा में भारतीय डिप्लोमैट्स को खतरा है और कनाडा आतंकी गतिविधियों का केंद्र बन रहा है. इससे पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर याद किया जाए तो ऐसा इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच देखने को मिला था जब आपसी मसलों के चलते डिप्लोमैट्स को नियमित अंतरालों में एक दूसरे के देशों से निकाल दिया था.
हाल का मामला अगस्त 2019 में हुआ था. इस हाल के घटना के दौरान, दोनों देशों ने अपने महादूतों को निकाल दिया और भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर के स्थिति में किए गए परिवर्तनों के बाद डिप्लोमेटिक संबंधों को कम किया गया. एक साल बाद, दूतावासों में कर्मचारियों को और भी कम किया गया, जिसके परिणामस्वरूप एक और दौर के निष्कासन किए गए.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े देशों में एक दूसरे के राजदूतों को निकालने इतना सरल प्रक्रिया का हिस्सा नहीं रहा है. वो भी तब जब मामला पश्चिमी देशों के संबंध में हो. विशेष रूप से भारत की ओर से पश्चिमी देशों के खिलाफ ऐसा एक्शन विरले ही है. याद करने पर पता चलता है कि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल के अंत की ओर भारत ने न्यू दिल्ली के दूतावास में एक डिप्लोमैट को वापस लेने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका से कहा था.
इस बात की घोषणा इसलिए की गई थी क्योंकि जनवरी 2014 में न्यू यॉर्क में एक ज्यूरी द्वारा उसे वीजा फ्रॉड के आरोप में आरोपित किया गया था और इसके परिणामस्वरूप भारतीय डिप्लोमैट देव्यानी खोबरगाड़े ने संयुक्त राज्य विभाग के कहने पर अमेरिका छोड़ने के लिए अमेरिका की तरफ से एक विमान में वापस जाने का प्रयास किया था. इस पारस्परिक निष्कासन ने भारत-संयुक्त राज्य रिश्तों का सबसे निचले समय का संकेत दिया था, जिसे खोबरगाड़े के द्वारा उनकी नौकरानी, संगीता रिचर्ड को कम वेतन देने के आरोप के तहत स्ट्रिप और सर्च करने का मामला सामने आया था. हालांकि भारत के साथ के संबंध तब फिर से सुचारित हुए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 के सामान्य चुनावों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आमंत्रित किया.
फ्रांस और जर्मनी भी कर चुके हैं सामना
इसी तरह एक और पश्चिमी राष्ट्र जिसके साथ भारत का बहुत गहरा साथ है, उसके प्रमुख विदेश दूत को लगभग 35 साल पहले निकाल दिया गया था. 1985 के प्रारंभ में, दक्षिण ब्लॉक के हालातों को एक ऐसे स्पाई स्कैंडल ने हिला दिया था जिसे भारत के इतिहास में सबसे बड़ा जासूसी घटना माना गया. इसके परिणामस्वरूप, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सलमान हैदर ने घोषणा की कि भारत ने फ्रांस के दूतावास सर्ज ब्वॉडवैक्स को देश छोडने के लिए 30 दिन की अनुमति दी है. हालांकि सरकार ने ठीक से नहीं बताया था कि ऐसा क्यों किया गया.
कुछ इसी तरह के क़िस्से जर्मनी और फ़्रांस जैसे देशों के साथ भी इतिहास में हुए है लेकिन बावजूद इसके पश्चिमी देशों ने बाद में भारत ने रिश्ते सुधार कर आगे की राह पकड़ी है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत कनाडा के रिश्तों की डगर कब तक संभल पाएगी फ़िलहाल यह कहना मुश्किल है.