पा किस्तान कंगाली के दौर से गुजर रहा है। खाने को आटा तक नहीं है। रोटी के लिए लड़ाइयां हो रही हैं। इन सबके बीच पाकिस्तान पर एक और संकट गहरा गया है। पाकिस्तानी सरकार को जहाजों के एजेंटों ने आगाह किया है कि सभी निर्यात कार्गो रुक सकते हैं, क्योंकि विदेशी शिपिंग लाइनें देश के लिए अपनी सेवाओं को रोकने पर विचार कर रही हैं।

22 सालों में 1500% बढ़ गया पाकिस्तान का कर्जा।

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पाकिस्तान इस समय कंगाल हो चुका है और लोगों में भूखमरी फैली हुई है। पाकिस्तान भी भारत से बंटवारे के बाद 1947 में ही बना था। यह देश अब इतिहास में पहली बार एक संप्रभु डिफ़ॉल्टर होने जा रहा है।

इस मुस्लिम राष्ट्र के कंगाल होने के पीछे कई कारण होने के साथ ही प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार रहे हैं। पाकिस्तान की इस हालत के कारण अविवेकपूर्ण आर्थिक और ऋण नीतियां रही हैं, जो वहां के हुक्मरानों ने बनाई हैं। इसका परिणाम ये निकला कि पिछले सिर्फ 22 वर्षों में पाकिस्तान का ऋण 1500% से अधिक बढ़ गया।

पाकिस्तान के अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में आर्थिक संवाददाता और वरिष्ठ पत्रकार शहबाज राणा ने पाकिस्तान की आज तक की आर्थिक स्थिति की समीक्षा रिपोर्ट में देश के हालातों का जिक्र किया है। इसके साथ ही बताया है कि 75 सालों में पाकिस्तान कर्ज के जंजाल में कैसे फंसता चला गया।

राणा ने लिखा है कि पाकिस्तान में आज ऋण पर ब्याज भुगतान की लागत 4.8 ट्रिलियन रुपये है जो वहां के संघीय बजट का 50% है। उन्होंने लिखा है कि 2000 के बाद से सभी सरकारों, चाहे वह सैन्य तानाशाही, नागरिक या मिश्रित रही हों उन्होंने अपने शासनकाल के अंत में देश के सार्वजनिक कर्ज को लगभग दोगुना किया है।

राणा ने लिखा है कि साल 2000 में पाकिस्तान का सकल सार्वजनिक ऋण 3.1 ट्रिलियन रुपये था। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2008 में जब जनरल सेवानिवृत्त परवेज मुशर्रफ की तानाशाही समाप्त हुई, तब तक पाकिस्तान का सकल सार्वजनिक ऋण बढ़कर 6.1 ट्रिलियन रुपये हो गया था। इसके बाद 8 वर्षों में कुल कर्ज में 100% की वृद्धि हुई।

बताया गया है कि जून 2013 तक पाकिस्तान का सार्वजनिक ऋण बढ़कर 14.3 ट्रिलियन रुपये हो गया था। इस दौरान देश पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का शासन था। पहले 4 साल यूसुफ़ रज़ा गिलानी प्रधानमंत्री थे। इसके बाद आखिर के एक साल रजा परवेज अशरफ पीएम बने थे। इसका मतलब 5 साल के पीपीपी के शासनकाल में सकल सार्वजनिक ऋण में 130% की वृद्धि हुई।

पीपीपी के बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज का राज आया। इसके बाद जून 2013 से मई 2018 तक के शरीफ की पार्टी के राज में सार्वजनिक ऋण 76 फीसदी बढ़कर 25 ट्रिलियन रुपये हो गया। इस दौरान नवाज शरीफ, शाहिद खान अब्बासी प्रधानमंत्री रहे थे।

फिर इमरान खान की अगुवाई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की सरकार बनी। इमरान ने कर्ज के बोझ को 20 ट्रिलियन रुपये तक कम करने की कसम खाई थी लेकिन 43 महीने के उनके शासनकाल के अंत में सार्वजनिक ऋण 77% की वृद्धि यानी 19.3 ट्रिलियन रुपये के कर्ज के इजाफे के साथ 44.3 ट्रिलियन रुपये हो गया।

राणा का कहना है कि आज पाकिस्तान का कुल कर्ज और देनदारी आसमान छूकर 60 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो गया है। हीरक जयंती वर्ष में पाकिस्तान ने पिछले 75 वर्षों के राजनीतिक सफर में 12 ट्रिलियन रुपये यानी अपने कुल ऋण का एक चौथाई हिस्से का भार उसमें जोड़ा है।

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के अभिलेखागार के अनुसार 1971 में जब पाकिस्तान दो भागों में विभाजित हुआ था, तब विदेशी ऋण 564 मिलियन डॉलर था। यह सब एक दीर्घकालीन वित्तपोषण योजना के तहत लिया गया था, जिसका उपयोग संपत्ति बनाने या खाद्य खरीद करने के लिए किया गया था।

पाकिस्तान के अर्थशास्त्री डॉ.कैसर बंगाली और मेहनाज़ हफीज के अनुसार 1960 से 2014 तक 54 साल की अवधि में विश्व बैंक ने पाकिस्तान को कुल 26.5 बिलियन डॉलर के 310 ऋण दिए। इनमें से 45% परियोजना वित्त पोषण के लिए थे और 55% विभिन्न कार्यक्रमों के लिए थे।

By Ajay Thakur

Ajay Thakur, a visionary journalist and the driving force behind a groundbreaking news website that is redefining the way we consume and engage with news.